गुप्त नवरात्रि 2025 पांचवां दिन: पंचमी पर छिन्नमस्ता की रहस्यमयी साधना, आत्मत्याग और आत्मज्ञान की प्रतीक
गुप्त नवरात्रि का पाँचवां दिन तांत्रिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत विलक्षण माना जाता है। 30 जून 2025 को पंचमी तिथि के दिन महाविद्याओं की पाँचवीं शक्ति माँ छिन्नमस्ता की गुप्त साधना की जाती है। उनका नाम ही उनके स्वरूप को दर्शाता है—छिन्न-मस्ता, यानी स्वयं का सिर काट देने वाली देवी। यह रूप जितना भयावह लगता है, उतना ही गूढ़ और अध्यात्म से परिपूर्ण है। यह देवी आत्मत्याग, आत्मसंयम और ब्रह्मज्ञान की चरम अवस्था का प्रतीक मानी जाती हैं।
माँ छिन्नमस्ता का स्वरूप और प्रतीक
छिन्नमस्ता देवी का चित्रण अत्यंत रहस्यमयी और साहसिक है। वे नग्न, रक्तवर्णा, आत्मविभोर मुद्रा में खड़ी होती हैं। उनके हाथ में उनका स्वयं का कटा हुआ मस्तक होता है, और उनके धड़ से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा होता है—एक मध्य की धारा स्वयं के मुंह में जाती है, और दो धारा उनके साथ खड़ी दो सहचरियों के मुंह में जाती हैं।
यह दृश्य साधक के लिए भय नहीं, बल्कि गहन बोध का माध्यम होता है। यह संकेत है—इच्छा की बलि, स्व-अहंकार के विसर्जन और ज्ञान की चरम अवस्था का। उनका यह स्वरूप बताता है कि आत्मत्याग ही परम ज्ञान की कुंजी है। जब मनुष्य स्वयं के सिर को—अर्थात् अहंकार, वासना और माया को—काटता है, तभी वह पूर्ण बनता है।
छिन्नमस्ता और तांत्रिक परंपरा
तंत्र ग्रंथों में छिन्नमस्ता को 'क्रियाशक्ति' कहा गया है—वह शक्ति जो संकल्प, इच्छा और कर्म को नियंत्रित करती है। उनकी साधना अत्यंत गूढ़ मानी जाती है और यह केवल उन्हीं साधकों के लिए उपयुक्त मानी गई है जो मानसिक रूप से पूर्ण नियंत्रण और संयम की अवस्था में हों।
गुप्त नवरात्रि में इस दिन की साधना में साधक अपने भीतर के द्वंद्वों—काम और त्याग, जीवन और मृत्यु, हिंसा और करुणा—का सामना करता है। छिन्नमस्ता की पूजा उन लोगों के लिए विशेष मानी गई है जो मानसिक स्थिरता, आत्मनियंत्रण और गूढ़ चेतना की ओर बढ़ना चाहते हैं।
छिन्नमस्ता का आध्यात्मिक संदेश
छिन्नमस्ता देवी का प्रतीकात्मक संदेश है कि “त्याग ही परम यज्ञ है।” जब व्यक्ति अपनी निजी इच्छाओं, लोभ और स्वार्थ को काट देता है, तब वह सच्चे अर्थों में सृष्टि के साथ एकाकार होता है। माँ छिन्नमस्ता बताती हैं कि शक्ति का वास्तविक रूप 'नियंत्रण' है—अपने ऊपर, अपने विचारों और इच्छाओं पर।
उनकी साधना से यह समझ आता है कि आत्मविकास का मार्ग केवल 'पाने' से नहीं, बल्कि 'छोड़ने' से होकर जाता है।
पंचमी तिथि और ज्योतिषीय संयोग
30 जून को पंचमी तिथि में मंगल ग्रह का पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश हो रहा है, जो ऊर्जा, निर्णय और साहस का सूचक है। मंगल की यह स्थिति छिन्नमस्ता साधना के लिए विशेष योग निर्माण करती है, क्योंकि यह मनुष्य में आत्मबल, साहस और मानसिक जागरूकता को पुष्ट करती है।
यह दिन विशेष रूप से उन साधकों के लिए उत्तम है जो क्रोध, भय, वासना या आत्म-संशय से ग्रस्त हैं और उन्हें अपने भीतर से काटना चाहते हैं।
आधुनिक जीवन में छिन्नमस्ता की साधना का महत्व
आज के तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी समाज में जहाँ व्यक्ति हर क्षण स्वयं को साबित करने की दौड़ में लगा है, छिन्नमस्ता की साधना आत्म-निरीक्षण और आत्म-अस्वीकृति की शिक्षा देती है। यह साधना व्यक्ति को बताती है कि सच्चा बल ‘स्व’ के त्याग में है—न कि दूसरों को हराने में।
छिन्नमस्ता से जुड़ी साधना का आधुनिक संदर्भ यह है कि जब हम अपने ‘मुखौटों’ को उतारते हैं और अपने भीतर की जड़ता को त्यागते हैं, तभी हम शुद्ध, निर्भय और वास्तविक बनते हैं।
गुप्त नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ छिन्नमस्ता की साधना का दिन है—वह देवी जो आत्मत्याग की पराकाष्ठा हैं। उनकी साधना भय को भंग करती है, अहंकार को काटती है, और साधक को वास्तविक आत्मा की ओर प्रवृत्त करती है। माँ छिन्नमस्ता हमें सिखाती हैं कि शक्ति का सर्वोच्च रूप वह है, जहाँ ‘स्व’ का विसर्जन ही ‘परम’ की प्राप्ति है।
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