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Thursday, 17 July 2025

सावन : जयपुर के ताड़केश्वर महादेव मंदिर आस्था, इतिहास और जल संरक्षण का अद्भुत संगम

जब भी हम किसी शहर की धरोहरों या मंदिरों की बात करते हैं, तो अक्सर वे शहर बसने के बाद बनाए गए होते हैं। लेकिन दुनिया में कुछ ही ऐसे मंदिर हैं जो शहरों के अस्तित्व में आने से पहले बने थे। ऐसा ही एक अद्वितीय मंदिर है ताड़केश्वर महादेव मंदिर, जो जयपुर में स्थित है। जयपुर का नाम कभी ‘जैपर’ था, और यह मंदिर उस समय से भी पहले का है। आज जयपुर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का हिस्सा है, और इस गौरवशाली पहचान में तारकेश्वर महादेव मंदिर का भी अहम योगदान है। तो आइए, जानते हैं इस ऐतिहासिक और पावन मंदिर के बारे में विस्तार से।



जयपुर शहर के हृदय में स्थित यह मंदिर प्राचीनता का प्रतीक है, जो श्मशान भूमि पर स्थापित एक स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजित है। यहां की विशेषता है कि यह मंदिर जयपुर शहर के निर्माण से भी पहले अस्तित्व में आ गया था। यह मंदिर पर्यटकों को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से आकर्षित करता है, बल्कि इसकी स्थापत्य कला, परिसर की ऊर्जा और उससे जुड़ी पौराणिक कथाएं भी विस्मित कर देती हैं।


पौराणिक कथाओं से जुड़ी श्रद्धा की परंपरा


महंत सत्यनारायण महाराज के अनुसार ये स्थान कभी घने ताड़ के वृक्षों का जंगल था। आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के व्यास, सांगानेर जाते समय जब यहां रुके तो उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने बच्चों को बचाने के लिए शेर तक से जा लड़ी। इसी स्थान पर एक गाय नियमित दूध भी छोड़ देती थी। इस घटना के बाद जमीन के नीचे से कुछ रहस्यमयी आवाजें आने लगी। इसकी सूचना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह को दी गई। महाराजा ने अपने दीवान और जयपुर के आर्किटेक्ट विद्याधर भट्टाचार्य को इस स्थान पर भेजा, जहां खुदाई में एक स्वयंभू शिवलिंग निकला। चूंकि यहां ताड़ के वृक्षों की भरमार थी, इसलिए इन्हें ताड़केश्वर महादेव कहा गया। ये मंदिर जयपुर के बसने से पहले ही अस्तित्व में आ चुका था। बाद में जब जयपुर शहर की नींव रखी गई, तो इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया।


मंदिर में जल संरक्षण की प्रेरणादायक पहल


धार्मिक स्थलों के साथ आमतौर पर आस्था जुड़ी होती है, लेकिन ताड़केश्वर महादेव मंदिर इससे कहीं आगे बढ़कर पर्यावरणीय संरक्षण की अनूठी मिसाल भी प्रस्तुत करता है। यहां शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल सीधे नालियों में नहीं बहाया जाता, बल्कि इसे वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से संग्रहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि यह मंदिर आज भारत के उन गिने-चुने धार्मिक स्थलों में शामिल है जो धार्मिकता के साथ वैज्ञानिक सोच को भी बढ़ावा देते हैं।


पर्यटन की दृष्टि से विशेष आकर्षण


पर्यटकों के लिए यह मंदिर एक पूर्ण अनुभव प्रस्तुत करता है—जहां पौराणिकता, परंपरा और पर्यावरणीय चेतना तीनों एक साथ चलते हैं। मंदिर की भव्य संरचना, पीतल से बनी विशाल नंदी प्रतिमा (जो पारंपरिक दिशा के बजाय दाईं ओर स्थित है), गणेश व हनुमान जी की प्रतिमाएं, तथा मंदिर परिसर का दिव्य वातावरण, यात्रियों को एक अलौकिक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। सावन में यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं, जिससे मंदिर परिसर का वातावरण एक भक्ति महोत्सव में परिवर्तित हो जाता है।


सावन में ताड़केश्वर की महिमा और सांस्कृतिक रंग


सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान ताड़केश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं के महासागर में बदल जाता है। भक्तों का मानना है कि सावन में शिव यहां हर दिन नया रूप धारण करते हैं। यह बात न केवल धार्मिक दृष्टि से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाती है, बल्कि यह मंदिर को सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत जीवंत बना देती है।


भक्तों में असीम आस्था


ताड़केश्वर महादेव की महिमा ऐसी है कि आसपास ही नहीं दूर दराज के भी हजारों लोग भगवान को जल अर्पित करने के लिए मंदिर पहुंचते हैं। यहां श्रद्धालुओं ने मंदिर में भगवान भोलेनाथ को अर्पित जल को संरक्षित करने के लिए बनाए गए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की भी जमकर तारीफ की। साथ ही भगवान का गुणगान करते हुए कहा कि यहां सावन में हर दिन भगवान नया रूप धारण करते हैं। ऐसे में ये मंदिर श्रद्धा और आस्था के साथ यहां की संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का भी बखान करता है।


ताड़केश्वर महादेव मंदिर केवल श्रद्धालुओं के पूजन-अर्चन का स्थल नहीं है, ये एक ऐसी विरासत है जो हमें धरोहर, दर्शन और धरती तीनों से जुड़ने की प्रेरणा देता है। ये मंदिर आज के समाज को ये सिखाता है कि यदि पवित्रता और पर्यावरण को एक सूत्र में जोड़ा जाए, तो हमारी परंपराएं आने वाले कल को और समृद्ध बना सकती हैं। यदि धार्मिक स्थलों पर वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक की पहल बढ़े तो देश-प्रदेश न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होगा बल्कि जल संकट जैसी चुनौतियों से भी लड़ने में सक्षम बनेगा।



ताड़केश्वर महादेव मंदिर, जयपुर का इतिहास

तारकेश्वर महादेव मंदिर जयपुर के सबसे प्राचीन और पवित्र स्थलों में से एक है। इस मंदिर का इतिहास जयपुर शहर की स्थापना से भी पहले का है। मान्यता है कि जब जयपुर बसाया गया था, उससे पूर्व ही इस स्थान पर एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था। प्रारंभ में यहाँ एक छोटा सा मंदिर था, जिसे समय के साथ जयपुर रियासत के प्रसिद्ध वास्तुकार विद्याधर जी ने भव्य स्वरूप प्रदान किया।


तारकेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक राजस्थानी शैली में निर्मित है, जो एक महल जैसे भव्य स्वरूप में दिखाई देती है और हर श्रद्धालु का मन मोह लेती है। मंदिर का मुख्य आकर्षण इसके गर्भगृह में स्थापित विशाल शिवलिंग है, जो काले पत्थर से निर्मित है और लगभग 9 इंच व्यास का है। इस स्वयंभू शिवलिंग की दिव्यता और ऊर्जा का अनुभव भक्तगण दूर-दूर से करने आते हैं।


मंदिर का निर्माण

तारकेश्वर महादेव मंदिर जयपुर का विस्तृत निर्माण कार्य 1758 ईस्वी में पूर्ण हुआ। जयपुर के तत्कालीन शासकों ने इस पावन स्थल के महत्व को समझते हुए इसे एक भव्य मंदिर का रूप दिया। मंदिर के चारों ओर फैले देवदार और चीड़ के घने वन इसे एक अत्यंत रमणीय वातावरण प्रदान करते हैं, जो यहाँ आने वाले हर यात्री को एक आध्यात्मिक अनुभव कराते हैं।


यह मंदिर न केवल भगवान शिव को समर्पित है, बल्कि यहाँ भगवान गणेश की भी एक विशेष प्रतिमा विराजमान है। इस गणेश प्रतिमा की खासियत यह है कि इसका सूंड बायीं ओर मुड़ा हुआ है, जिसे अत्यंत शुभ और विशेष माना जाता है।


मंदिर के प्रांगण में स्थापित विशाल घंटियाँ, जिनका वजन लगभग 125 किलोग्राम है, मंदिर की भव्यता और शक्ति का प्रतीक हैं।


प्रमुख त्योहार और आयोजन

तारकेश्वर महादेव मंदिर, जयपुर में महाशिवरात्रि और गणेश चतुर्थी जैसे पर्व बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। इन अवसरों पर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं। देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु इन पर्वों के दौरान मंदिर में आकर भगवान शिव और गणपति बप्पा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


ताड़केश्वर नाम कैसे पड़ा?

प्राचीन समय में जिस स्थान पर आज ताड़केश्वर महादेव मंदिर स्थित है, वहाँ ताड़ के वृक्षों की भरमार थी। घने ताड़ के वृक्षों के बीच यह स्थान एक प्राकृतिक तपोभूमि जैसा प्रतीत होता था। मान्यता है कि एक बार अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के व्यास, सांगानेर जाते समय इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे। विश्राम के दौरान ही उन्होंने यहाँ स्थित शिवलिंग के प्रथम दर्शन किए। चूँकि यह स्थान ताड़ के पेड़ों से आच्छादित था और यहाँ शिवलिंग के अद्भुत दर्शन हुए थे, इसलिए इस पवित्र स्थल का नाम ‘ताड़केश्वर महादेव’ पड़ा।


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